भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
(अध्याय –
चार)
“अंजान
व्यक्ति से परिचय”
अब समय धीरे धीरे उजाले से शाम की
तरफ अग्रसर हो रहा था, और अभी तक वो लोग उस किले के अन्दर तो दूर की बात है. अभी
तक उसके मुख्य दरवाजे को भी पार नहीं कर पाए थे.
“गीता, मुझे लगता है हमें आज ये
जगह बिना देखे ही वापस जाना होगा, यार शाम होने वाली है ओर हम लोग अभी तक इसके
अन्दर भी नहीं गए है, देखकर आना तो दूर की बात है”, हर्ष ने चलते चलते कहा.
“अब चलो वरना यहाँ खड़े खड़े ही समय
निकल जाएगा यार,क्या ऐसे धीरे धीरे चल रहे हो” अनीता ने दोनों को बुलाते हुए कहा|
चल तो रहे है यार, लेकिन ये बता
हम वंहा क्या देखेंगे, मेरा मतलब है हमें वहा पर कब क्या हुआ था, ये कौन बताएगा ?
गीता ने अपने पैरों की गति बढ़ाते हुए अनीता से पूछा.
अब कोई न कोई तो मिलेगा ही वहां,
या अन्दर गेट पर किसी से पूछ लेते है ना |
शाम के लगभग 3 बज चुके थे, और वो
लोग अभी तक भानगढ़ के दरवाजे तक भी नहीं पहुंचे थे.
यार मुझे लगता है आज हम यहाँ कुछ
नहीं देख पायेंगे, लगता है हमारा आना फालतू ही हुआ है. सब बेकार हो गया| हर्ष ने
उतरे हुए चेहरे से गीता की तरफ देखते हुए कहा,
“हां मुझे भी ये ही लगता है, एक
तो हम पहले से इतना लेट हो गए है ऊपर से ये मौसम भी हमसे ना जाने कौनसी दुश्मनी
निभा रहा है, यार अनीता लगता है वापस से बारिश आने वाली है, अब तू ही बता क्या
करना है ?” गीता ने आसमान को निहारते हुए पूछा|
अब अगर यही खड़े खड़े बाते करते
रहेंगे तो पक्का कभी हम वहां तक नहीं पहुंचेंगे. तुम लोग भी ना यार, बहुत सोचते
हो,
हर्ष एक काम कर, आगे जाके गेट
एंट्री पर पूछ ले देखो के अभी हम आगे जा सकते है या नही. जब तक मै यहाँ किसी को
देखती हूँ, जो हमें इस जगह को जल्दी और पूरा घूमा सके| ये कहते हुए अनीता गीता को
अपने साथ लेके थोडा सा अलग दिशा में चल देती है, और हर्ष गेट एंट्री की तरफ चल
देता है|
“यार अनीता तुझे लगता है इस बारिश
के मौसम में तुझे यहाँ कोई गाइड मिलेगा, और भी इस सुनसान और वीरान महल के आसपास?
मुझे तो नहीं लगता है,”
“अब तू चलना यार टाइम कम है, और
मौसम भी ख़राब हो रहा है, तू टाइम ख़राब मत कर देखते है कोई न कोई तो मिलेगा ही|”
कहते हुए अनीता आगे बढती है|
जैसे ही वो लोग थोडा सा आगे की
तरफ बढ़ते है, अचानक से तेज हवा शुरू हो जाती है, और उस हवा के साथ मानों मिटटी के
बबंडर उठने शुरू हो गए हो.
अचानक से सब कुछ दिखना ही बंद हो
गया है. हर तरफ मिटटी और धुल के गुब्बारे नजर आ रहे है, जहाँ से वो लोग वापस आये
थे वो स्थान भी उनको देख पाना बहुत मुश्किल हो रहा था|
अनीता यार ये अचानक से क्या हो रहा है? 2 मिनट पहले तक तो कुछ भी नहीं था. यार मुझे बहुत डर लग रहा है. मै क्या करू? गीता मानो उस तेज हवा में भी पसीना पसीना हो चुकी हो|
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
यार अब थोडा डर तो मुझे भी लगने लगा है, लेकिन कोई बात नहीं ये थोड़ी देर में रुक जाएगा तू आराम से यही रुक जा.
अनीता मन ही मन में सोचने लगी की,
जो उसने सपने में देखा था ये मौसम वैसा ही कुछ नजारा दिखा रहा है, वो ही हवा के
बबंडर, वो भी धूल भरी आंधी, मानो वो सपना सच होने के लिए आतुर हो.
वो तूफ़ान धीरे धीरे कम होने लगा
था, और अचानक अनीता की आँखे फटी की फटी रह गई,
मानो वो सपना ही सच हो रहा था
उसके लिए, मानो उस धुल भरे तूफ़ान में से कोई साया उनकी तरफ चला आ रहा था, दिखाई
देना थोडा मुश्किल था लेकिन, उस तेज तूफ़ान में भी उसके क़दमों की आहट अनीता को
बखूबी सुनाई देने लगी थी.
अब अनीता हद से ज्यादा डर चुकी
थी, उसे लगा की उनका अंतिम समय आ चूका है,और वो जोर से चिल्लाने की कौशिश करती
उससे पहले ही हर्ष ने आवाज लगाई.......अनीता , गीता कहा हो तुम लोग.......इधर आओ
ना...
और जैसे ही अनीता ने उस जगह से
अपना ध्यान हटाया, और हर्ष की बात सुनकर वापस उस तरफ देखा तो वो साया अब गायब हो
चूका था. मानो उस जगह कोई कभी था ही नहीं. ... और वो तूफ़ान भी अब पूरी तरह से रुक
चूका था|
अरे चलो यार जल्दी से वह एक लड़का
मिला है जो हमें महल घुमा सकता है, अभी.... जल्दी करो वरना देर हो जायेगी|
आ रहे है.. रुको वही..अनीता ने
आवाज देते हुए कहा.
गीता तुमने अभी तूफ़ान में किसी को
आते हुए देखा क्या वहा?
आते हुए.....किसे ? मेने तो किसी
को नहीं देखा.... यार इतने तेज तूफ़ान में आँख तो खुल ही नहीं रही थी, और तू देखने
की बात कर रही है, तूने किसे देख लिया यहाँ.. इस तूफ़ान में ?
उससे पहले ही हम वहां चलकर घूमकर
आ जाते है, कहते हुए अनीता हर्ष की तरफ चल देती है|
“क्या हुआ कौन है.. और टिकिट का
क्या हुआ?” गीता ने हर्ष को पूछा
मैं वहां गया था लेकिन मुझे तो वह कोई नहीं मिला...
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
“क्या तो फिर हम अन्दर कैसे जायेंगे.. और फिर तुम किसे साथ लाये हो...” अनीता ने अचम्भे से हर्ष को पूछा|
अरे एक लड़का मिला है, वो कह रहा
है उसकी अच्छी जानकारी है यहाँ, उसके साथ होते हुए यहाँ कोई हमसे कुछ नहीं
मांगेगा. तुम चलो तो सही यार.. मुस्कुराते हुए हर्ष ने अनीता की बात का जबाब
दिया..
“वाह ये तो अच्छा हुआ यार.. लेकिन
वो है कौन, और यहाँ क्या कर रहा है..” गीता ने हर्ष से पूछा..
अरे यार अब मैं कौनसा उसका पूरा
बायोडाटा थोड़े निकलने गया था, बस वो वहां मिला और उसने जो मुझे कहा मेने तुम दोनों
को बता दिया, अब चलना है या नहीं वो तुम देख लो..
“अब चलने के अलावा कोई रास्ता भी
नहीं बचा है,, यहाँ खड़े रह कर भी क्या करेंगे, कम से कम अन्दर जाकर घूम तो आयेंगे..”
गीता ने हर्ष की बात को स्वीकारते हुए कहा
ठीक है चलो.. कहा है वो लड़का..
अनीता ने हर्ष को देखते हुए कहा.
वो उस तरफ गेट के पास ही बैठा
है.. चलो चलते है ज्यादा लेट हो जायेंगे.
तीनो वहा से उस लड़के की तरफ बढ़ते
है, और जैसे ही उस तक पहुँचते है.
चलो भैया हम तैयार है चलने को...
हर्ष ने उसकी पीठ के पीछे से आकर कहा..
जैसे ही उसने अपना चेहरा उनकी तरफ
घुमाया.... मानो अनीता के होश उड़ गए हो.. उसे देखते ही अनीता कुछ कदम पूछे की तरफ
चलने लगी.. मानो उसके पैरो के निचे से जमीन खिसखने लगी हो..
मैं......? आप मुझसे बात कर रहे
है....... मै आपका पीछा कर रहा हूँ ? कहाँ से और अपने मुझे कहा देखा? उस लड़के ने
अनीता को मुस्कुराते हुए जबाब दिया..
झूट मत बोलो तुम उस वक्त भी वही थे
जब हम लोग बस से उतर के आये थे.... मेने तुमको देखा था..
अरे यार आप कैसी बात कर रहे
है..... मैं तो यही पास के गाँव में रहता हूँ. जीविका के लिए थोडा बहुत यहाँ लोगो
को घुमा लेता हूँ बस... लगता है अपने किसी और को देख लिया होगा वहा......
अब अनीता को भी लगा कि .... वो उन
लोगो को लेके वह तक आयी है, और अब अगर बिना देखे वहां से जाएंगे तो उनको बिल्कुल
भी अच्छा नहीं लगेगा.
हां शायद तुम ठीक कह रहे हो.. वो
शायद कोई और ही था.. ठीक है चलो.. लेकिन याद रखना हमें जल्दी ही वापस आना है..
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
अब वो लोग वहां से महल की तरफ
चलने लगे.. थोडा आगे जाते जाते अनीता के दिमाग में फिर से वही बात आ रही थी की
आखिर जिस लड़की को उसने वहां देखा था वो यहाँ कैसे आ सकता है, क्या ये सच बोल रहा
है या, ये कोई ओर ही बात है...
और वो लोगो धीरे धीरे महल के पास
पहुचने लगे... और जैसे जैसे वो महल के करीब जा रहे थे, मानो वो महल किसी दानव की
तरह अपना आकर बड़ा करता नजर आ रहा था|
“यार जैसा इसके बारे में सोचा था
ये तो उससे भी ज्यादा डरावना नजर आ रहा है, अब समझ आ रहा है की क्यूँ लोग यहाँ रात
में नहीं रुकना पसंद करते है|
जो महल बहार से ही इतना डरावना
हो, वो रात की काली अन्धयारी रात में कैसा लगता होगा..” हर्ष ने हस्ते हुए कहा|
हाँ डरावना तो है.... और सुना है
यहाँ रात में भूत भी आते है..... और रात को यहाँ महल में पूरा दरवार सजता है, और
वो हर एक कार्य होता है जो एक राजमहल में होता है| उस लड़के ने हर्ष की बात का जबाब
दिया.
अरे पहले अपना नाम तो बता दो
यार,,, आप कौन हो?
मेरा नाम.... क्या करोगे जानकर?
अरे नाम में क्या परेशानी है?
मेरा मान थोडा अजीब लगता है लोगो
को इसलिए मै किसी को अपना नाम नहीं बताता हूँ|
अरे बता भी दो कब तब आपके अरे अरे
कह कर बुलाएँगे|
ठीक है.. मेरा नाम वीरान है|
वीरान...... ये कैसा नाम है ?
कहाँ था ना थोडा अजीब नाम है..
इसलिए में किसी को नहीं बताता हूँ|
अरे नहीं ऐसा नहीं है... कोई ना
अच्छा नाम है, चलो अब जल्दी से महल में चलते है शाम होने को है, वापस भी चलना है|
ठीक है चलिए. मै आपको जल्दी से
महल में घुमा के ले आता हूँ|
जैसे जैसे उनके कदम महल की तरफ बढ़
रहे थे, मानो कुदरत उन्हें खुद आगे जाने से रोकने को आतुर हो, अचानक से फिर से तेज
हवां के साथ बारिश आना शुरू हो गई|
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
पांचवा
अध्याय:
(काली रात
अंजान के साथ)
शायद कुदरत भी ये जानती थी की आगे
जो होने वाला है वो इस दुनियाँ के तौर तरीकों और विश्वास से कही ऊपर और उससे बहुत
अविश्वसनीय होगा.
जैसे जैसे कदम महल की तरफ बढ़ रहे
थे, वैसे वैसे मौसम मानो किसी अलग ही अनहोनी की कहानी गाये जा रहा था, अचानक से
बारिश कुछ तेज होने लगी थी|
“गीता यार मुझे लगता है हम यहाँ आज
गलत ही आ गए है, देख ना यार मौसम कितना ख़राब होता जा रहा है, और उपर से शाम भी
होने वाली है, यार अब मुझे डर सा लगने लगा है.” हर्ष ने मौसम को देखते हुए गीता से
कहा.
हाँ यार
अब तो मुझे भी एशिया ही लगता है........गीता ने हर्ष को जबाब देते हुए कहाँ|
अरे आप लोग क्यूँ डर रहे है, मै
हूँ ना आपके साथ, औरमै तो इस मौसम से बहुत वाकिफ हूँ, ना जाने कितनी बार इस मौसम
से सामना होता है|....वीरान ने सबकी तरफ देखते हुए कहाँ.. और हसने लगा...
इन हँसी भरी बातों के बिच अनीता
मानो कुछ ओर ही सोचने में गुम थी, जैसे मानो कुछ उसके दिमाग में चल रहा था, “अनीता
क्या हुआ कहा गुम हो गई हो.....” गीता ने पूछा.
नहीं कही नहीं यार...... बस ऐसे
ही कुछ अजीब सा लग रहा है इस जगह पर आकर..... ऐसा लगने लगा है जैसे में यहाँ पहली
भी कभी आई हूँ...महल के अन्दर घुसते हुए अनीता ने गीता को कहाँ.
उसकी ये बात सुनते ही वीरान ने
हल्के से अनीता की तरफ देखा.. मानो कुछ ऐसा हो रहा था जैसा वो भी सोच रहा था. और
वो कुछ ऐसा ही चा रहा हो|
थोडा समय और बीतने लगा और देखते
ही देखते कब शाम के सात बज गए उन लोगो को पता ही नहीं चला...
अरे यार हम लोग तो बहुत ज्यादा
लेट हो गए है..... हर्ष ने घडी की तरफ देखते हुए कहा.... हमें यहाँ से निकलना
चाहिए.. जल्दी निकलों यहाँ से यार.. पता है न सूर्यास्त के बाद यहाँ कोई नहीं रहता
है. चेहरे पर अजीब सा डर दिखाते हुए हर्ष ने गीता और अनीता से कहाँ|
उसको हँसता देख कर वो तीनों ही एक
दुसरे को देखने लगे.....
तुम हंस क्यूँ रहे हो, मैने कुछ
गलत कहाँ है क्या ?
क्यूँ ऐसा क्या कहाँ है मैंने जो
हंस रहे रहे हो बताना जरा.. क्या मैने इस महल के बारे में गलत कहाँ है.. सब कहते
है की यहाँ जो भी सूर्यास्त के बाद रुका है... वो जिन्दा नहीं रहता है.. और हम सब
अब तक यहाँ है और सूर्यास्त होने वाला है... तो हम सबको अब निकल जाना चाहिए|
क्या अपने कभी इससे पहले ऐसा कुछ देखा है? जिसे शायद किसी ने इससे पहले ना देखा हो?
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
“मतलब ..........?” गीता ने वीरान को अचरज भरी निगाहों से देखते हुए पूछा.
मेरा मतलब है कि अपने ये भूत वगेरह देखे है इससे पहले कभी?.... या बस दुनियां की कही बातों पर ही विश्वास करते हो?
हहाहहः....................................................
फिर क्या मजा यहाँ घुमने का.. जैसे आये हो वैसे ही चले जाओगे वापस..........
तुम कहना क्या चाहते हो वो बोलो
यार ऐसे डराओ नहीं......
कुछ नहीं आप लोग अगर जाना चाहते
हो तो जाओ... लेकिन आज के बाद आप अब दो महीने तक इस महल में वापस नहीं आ पाओगे...
ये महल बंद हो जायेगा..... तो अगर आपको ये महल घूमना है तो आपके पास बस आज की ये
शाम और रात ही है|
क्या.....? रररर......... रात
.... तुम पागल हो गए हो क्या ? इस महल में लोग दिन में नहीं आते है तूम हमें रात
को रोकने की बात कर रहे हो.....
नहीं हमें नहीं घूमना और हमें
नहीं रहना यहाँ रात में...गीता, अनीता चलो यहाँ से हम अभी निकल रहे है.... बहुत
घूम लिए यहाँ हम... हर्ष ने दोनों की तरफ देखते हुए कहा|
सोच लो शायद मैं आपको वो सब दिखा
सकता हूँ जो किसी ने सोचा भी नहीं होगा| मैं यहाँ बहुत बार रात में रुका हूँ और
जैसा लोग कहते है वैसा शायद कुछ भी नहीं है यहाँ, बल्कि उसकी बहुत कुछ अच्छा है,
जो शायद आपको देखकर अच्छा लगेगा और मजा भी आएगा, ऐसा कुछ जिसे शायद आप बार बार
देखना चाहोगे| वीरान ने महल को देखते हुए हर्ष को कहां|
नहीं हमें कुछ नहीं देखना और मुझे
तो अब तुम भी सही नहीं लग रहे हो, गीता, अनीता चलो यहाँ से, अब यहाँ रहना ठीक नहीं
है, चलो जल्दी से यहाँ से, हां यार अब तो मुझे भी डर सा लगने लगा है, इसकी बातों
से, पता नहीं ऐसा क्या है यहाँ? मुझे नहीं नहीं देखना यार.. चलो चलते है..गीता ने
हर्ष को जबाव देते हुए कहा|
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
अनीता में मन में अभी भी वो सब
बातें चल रही थी जो अब तक उसके साथ हुई थी, उसे अब तक समझ नहीं आया की जिस लड़के वो
उसने उस बस स्टैंड पर देखा था वो लड़का उनके साथ उस जगह कैसा पहुंचा, वो सपना आखिर
क्या अहसास दिलवाना चाहता था, अभी जो कुछ देर पहले अचानक से मौसम ख़राब हुआ तभी ये
वीरान उनसे क्यूँ मिला, इस महल में अभी कोई और क्यूँ नहीं है ?
अनीता अभी तक इन सभी में डूबी हुई
थी, की गीता और हर्ष ने उसे उसकी नींद से वापस जगा दिया हो|
हाँ..... क्या हुआ, चलो ना घुमने
चलते है ना, मौसम ख़राब हो रहा है फिर घर वापस भी चलना है.अनीता ने मानो किसी गहरी
सोच से बाहर आते हुए गीता की बात का जवाब दिया|
“तू पागल है क्या.. इतनी देर से
कहाँ गुम है... हम दोनों तुझे इतनी देर से
कुछ कह रहे है सुनाई नहीं दिया क्या तुझे”.. गीता ने अचंभित तरीके से अनीता को
देखते हुए कहाँ.....
नहीं मैं तो यहीं हूँ मैं कहाँ
खोई हूँ.... चलो आगे चलते है ना....
आगे नहीं हम वापस चल रहे
है....गीता ने कहा,
वापस क्यूँ क्या हुआ... हम तो
यहाँ घुमने आये है ना... तो घूम के तो चले.....
यार हम लोग अभी इतनी बड़ी रामायण
गा रहे थे, और तू ना जाने कहाँ गायब है...
कही नहीं हूँ... तुम लोग ऐसे
क्यूँ डर रहे हो. हम जिस काम के लिए यहाँ
आये है वो तो करके ही जायेंगे... चाहे कुछ भी हो जाए| तुम लोग साथ आओ तो ठीक है..
और नहीं आना चाहते हो तो वापस जा सकते हो, मैं यहाँ से पूरा महल देखकर ही जाउंगी..
अनीता की ये बात सुनकर मानो गीता
और हर्ष के पैरों के निचे से जमीन खिसक गई हो|
अनीता तू पागल हो गई है क्या? ये
किस तरह से बात कर रही है, क्या हो गया है तुझे अचानक, तू ठीक तो है न? गीता ने
अनीता की तरफ देखते हुए कहाँ|
सब कुछ ठीक है, टाइम ख़राब मत करो
तुम लोग चल रहे हो या नहीं मेरे साथ|
उन तीनों के अलावा एक इंसानओर था
वहां जो शायद इन सब बातों को सुनकर शायद मन ही मन हंस रहा था, अब तक शायद उस इंसान
के बारे में किसी को कुछ ज्यादा मालुम ना होने के वजह से अब तक किसी ने उस पर
ज्यादा गौर नहीं किया कि आखिर वो सच में है कौन|
उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं
है की जो सब कुछ उनके साथ हो रहा है वो कोई भगवन या कुदरत की वजह से नहीं हो रहा
था, कोई है जो ये सब उनसे करवा रहा था, और आगे भी शायद वो कुछ अलग ही करवाने वाला
था, जिसे सोचना शायद उस वक्त उन लोगो के बस में नहीं था|
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
अब धीरे धीरे सब कुछ वैसे ही होने
वाला था जैसे शायद कोई और करवाना चाह रहा हो, क्यूंकि उन सबने बातों ही बातों में
ये सोचना भूल गए की, शाम होते ही वहां इंसानों का होना उनके लिए ठीक नहीं है,
धीरे धीरे अचानक देखते ही देखते
मानो वो तीनो में कुछ अजीब सी खींचतान शुरू हो गई|
अनीता का स्वभाव अचानक से मानो
बदल सा गया हो, वो अब गीता और हर्ष से उस तरह से बात नहीं कर रही थी, जैसे अब तक
उनके साथ थी, मानो वो कोई उसके जानकार है ही नहीं,
तुम लोगो को यहाँ रुकना है या
नहीं, तुम जाना चाहते हो तो वापस चले जाओ, मुझे यहाँ आज रुकना ही है, और वैसे भी
मौसम इतना ख़राब होने जा रहा है, कहा जाओगे इस मौसम में|
कही भी जायेंगे लेकिन हम यहाँ
नहीं रुकेंगे, और तुम भी साथ चलो, गीता ने अनीता की बात को काटते हुए कहा|
अरे आप लोग क्यूँ इतना डर रहे हो,
मैं हूँ ना यहाँ आपके साथ, मैं भी रुक रहां हूँ ना, वीरान ने सबकी तरफ देखते हुए
कहाँ
नहीं हमें नहीं रुकना यहाँ, हम जा
रहे है, अनीता चलो यहाँ से.
नहीं मैं नहीं आ रही, मुझे यहाँ
आज रुकना ही है, देखू तो सही आखिर यहाँ ऐसा है क्या ?
अनीता पागल मत बन चल यहाँ
से...........गीता ने फिर से अनीता को टोका.
तुम लोग जाओ में नहीं आ रही..
ठीक है, हम जा रहे है, तुम आना
चाहो तो आ जाओ.... गीता ने गुस्से से अनीता की तरफ देखते हुए कहाँ.
हर्ष चलो यहाँ से, वो आ जाएँगी
अपने आप, जब डर लगेगा तो......
ठीक है गीता चलो यहाँ से मुझे भी
डर लग रहा है,..
अब गीता और हर्ष वहाँ से जाने को
तैयार हो गए, लेकिन अब तक वो ये समझ नहीं पाए कि आखिर अनीता को अचनाक हुआ क्या है,
उसका अचानक से ये स्वभाव कैसे हो गया,
उधर महल में अब वीरान और अनीता
दोनों ही अकेले थे, शायद अनीता भी ये बात जानती थी लेकिन वो शायद उसके लिए अलग नहीं
था|
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
अध्याय छ:
(रात का
रहस्य)
हर्ष और गीता अब महल से बाहर आ चुके
थे, और अनीता और वीरान अब भी महल के अन्दर थे|
यार गीता मुझे डर लग रहा है हमें
अनीता को अकेले उस अनजान लड़के के साथ नहीं छोड़ना चाहिये था, और अब हम महल से बाहर
भी आ गए है और वो ना जाने अकेले कैसे उसके साथ वहां होगी, उसे वापस लेने चले क्या
?
यार डर तो मुझे भी लग रहा है,
अगेर उसे अन्दर कुछ हो गया तो घर पर क्या कहेंगे उसके लिए, चलो हम उसे वापस ले आते
है, हमें उसे अन्दर अकेले नहीं छोड़ना चाहिए थे|
हाँ गीता चलो उसे लेके ही आते है,ना
जाने अकेले वो कैसी होगी वहां......
अँधेरा मानो सर पर आ गया हो, और
कुछ दीवारों सा दिखने वाला महल मानो किसी विशाल भयावक खंडर का रूप ले चूका हो,
गीता और हर्ष ने जैसे ही उस की तरफ अपना चेहरा उसकी तरफ घुमाया, मानो डर के मारे
वो अपने कदम ही वापस उस तरफ नहीं उठा पाए हो|
यार गीता मुझे लगता है हम यहाँ
बहुत हीगलत आ गए है, मुझे लगता है ये आज हमारा आखरी दिन है, देख न ये कितना भयानक
और डरावना सा लग रहा है, पता नहीं हम ऐसी जगह पर अब तक कर क्या रहे है| और ऊपर से
वो अनीता उस अंजान के साथ अन्दर महल में ही रुकी गई, ना जाने वो कैसी होगी अब
तक...
अब बाते बंद करो, और चलो अन्दर
चलते है, गीता ने हर्ष का हाथ पकड़ते हुए उसको आगे की तरफ खिंचा,
उधर अनीता और वीरान अब महल के
बिलकुल बिच में पहुँच चुके थे, और अब गीता को मानो उस जगह डर की जगह कुछ अलग ही
महसूस हो रहा था |
वो महल की दीवारों को कुछ इस कदर
छू कर महसूस कर रही थी जैसे मानो वो उस जगह से पहले से ही वाकिफ हो|
क्या हुआ डर लग रहा है
क्या?.....वीरान ने अनीता की तरफ देखते हुए पूछा.
नहीं, मै ये ही सोच रही हूँ आखिर
मुझे डर लगने की जगह ये एक अजीब सी बैचेनी और ना जाने क्यूँ ये सब कुछ ऐसा लग रहा
है, जैसे मैं यहाँ पहले से हूँ, मेरा मतलब है की मैं इस जगह को बहुत अच्छे से जानती
हूँ|
अनीता ने अचानक से वीरान को देखते
हुए पूछा.......तुम आखिर हो कौन?
क्या मतलब, मैने कुछ देर पहले आप
सब को बताया तो था,
नहीं तुम वो नहीं हो जो तुमने
बताया था..... तुम मुझे कुछ और ही लगते हो,
सच-सच बताओ क्या मैने तुम्हे उस
बस स्टॉप पर देखा था, क्या वो तुम ही थे?
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
तभी अचानक से मानो मौसम में एक अजीब सी तीव्रता आ गई हो, बिजली की गिडगिडाहत अचानक से और भी तेज हो गई हो....... अनीता की आँखे जैसे ही वहां से हट कर बाहर बिजली की तरफ गई, अचानक से मौसम बिल्कुल शांत हो गया हो, अनीता के कानों में किसी के क़दमों की धीमी धीमी आहट सुनाई देने लगी थी.
अब धीरे धीरे अनीता के सामने जिसके कदमो की आहट सुनाई दे रही थी, वो एक परछाई उसकी तरफ उसकी तरफ बढ़ने लगा, उसको अपनी तरफ बढ़ता देख अचानक से अनीता के दिलों दिमाग में फिर से वो सब दृश्य आँखों के सामने आने लगे जो उसने अब तक रास्ते में देखे थे|
उसका वो सब देखा मानो अब सच बन चूका हो, जिस चेहरे को उसने बस में और सपने में देखा था, वो चेहरा अब धीरे धीरे उसके सापने आ रहा था.
जैसे जैसे उसके कदम अनीता की तरफ बढ़ रहे थे, अनीता के कदम पीछे की तरफ हटने लगे. पसीने से लतपत अनीता अब डर से बुरी तरफ कापने लगी थी.
कौन हो तुम..........वीरान कहाँ हो..ज्ज्ज्जज जल्दी आयो यहाँ प्लीस..
अनीता की आवाज हलक से बाहर तक नहीं निकल रही थी,
बहुत चिल्लाने के बाद भी वहां अनीता को सुनने वाला कोई नहीं था..
किसे बुला रहे हो राजकुमारी जी ................
रानी...........कौन राजकुमारी ? और तुम हो कौन सामने क्यूँ नहीं आते......... अनीता ने उस परछाई की तरफ देखकर पूछा.
मैं आपके सामने ही तो था....तब से लेकर अब तक मै ही तो आपके साथ था.
तुम.... मतलब तुम वीरान हो.......?
जी मै वही हूँ,, आपका वीरान..
तुम मुझे बार बार राजकुमारी क्यूँ बुला रहे हो.... और तुम सामने क्यूँ नहीं आ रहे हो.... तुम जो भी हो...सामने आओ......
सामने तो मैं कबसे आपके था, किन्तु शायद आप मुझे कभी पहचान ही नहीं पाए|
मैं तो पिछले कई जन्मों से आपका यहाँ इंतजार कर रहा हूँ, और देखो आज आखिर मेरा आपको देखने का सपना कितने जन्मों बाद साकार हो रहा है|
तुम पागल हो गए हो क्या.... ये क्या राजकुमारी..... पिछले जन्म...... ये सब बातें फ़िल्मी है तुम मुझसे ये सब बातें मत करो... प्लीस तुम जो भी हो सच बताओ और सामने आओ..... मुझे ये सब नाटक पसंद नहीं है....
जो सच है वो बताओ, ऐसे बातें मत बनाओ यार......
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
वैसे तो शायद आप मुझे कभी पहचान ही नहीं पाओगे, क्यूंकि उस वक्त भी मैं आपके लिए अनजान था, और आज भी मै शायद वही हूँ, आप उस समय भी मेरे लिए बहुत अजीज थे ओर आज भी,
ये कोई कुद्तर का ही करिश्मा है कि आज इतने सालों बाद मुझे आपसे मिलने का मौका दिया है|
ओहो तुम ना जाने क्या बातें कर रहे हो... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है|
तुम ना मुझे अब परेशान कर रहे हो.. सच बात क्यूँ नहीं बता रहे हो.
क्या आपको सच मैं कुछ याद नहीं आ रहा है, क्या आपके लिए ये जगह ये महल कोई याद आपके दिल दिमाग में नहीं उभार रहा है, क्या आपको जरा भी याद नहीं की आप उस समय क्या थे?
नहीं मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है, और तुम पहले मेरे सामने आओ ऐसे परछाई से बनकर मुझे क्यूँ डरा रहे हो... और वो मेरे दोनों दोस्त कहाँ है,
तुम्हारे चक्कर में मै उनको तो भूल ही गई.... कही तुमने उनको तो कुछ नहीं किया ना ,,, सच सच बताओ..
नहीं मैंने कुछ नहीं किया.. फ़िलहाल वो दोनों सुरक्षित है और सही जगह पर है, समय आने पर वो अपने आप सही स्थान पर पहुँच जाएंगे|
यार तुम आखिर हो कौन?????? और मुझसे क्या चाहते हो.... मैं इस समय यहाँ क्यूँ हूँ, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है..... क्या तुम मुझे सच बताओगे.. आखिर ये सब क्या चल रहा है|
बताऊंगा सब कुछ बताऊंगा.... आपको सब कुछ बताने के लिए ही तो मैं यहाँ इतने जन्मों से रुका हुआ हूँ|
ये महल इतना वीरान क्यूँ हो, और यहाँ आखिर हुआ.... मुझे सब कुछ जानना है..... अनीता ने उत्सुकता जताते हुए वीरान से पूछा..
जी जरुर,..
हो सकता है शायद आपको ये कहानी सुनने के बाद वो सब कुछ याद आये हो मैं आपसे कहना चाहता हूँ, आपको समझाना चाहता हूँ....
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
एक दिन उसके वहां होने की खबर महाराज को पता चल गई, और स्वयं महाराज ने उससे मिलने की इच्छा व्यक्त की और उसे महल में बुलाने के लिए अपने सबसे विश्वसनीय सेनानायक अर्थात मुझे भेजा|
महाराज की आज्ञा मिलते ही मैं तुरंत उस तांत्रिक को लेने चल दिया| किन्तु उसकी बातों और उसकी हालत देखकर इतना तो समझ आ गया था कि वह व्यक्ति बहुत ही खतारनाक और अत्यधिकघातक था, किन्तु महाराज का आदेश होने की वजह से उसे अपने साथ लाना मेरी मज़बूरी थी|
जैसे ही वो मेरे साथ महल के अन्दर प्रवेश कर रहा था, ना जाने कैसे उस समय उसने आपको महल के अन्दर देख लिया| और आपकी सुन्दरता पर पूर्ण रूप से मोहित हो चूका था|
वह महाराज के सामने गया और उसने उसी समय बिना कुछ सोचे महाराज से आपकी मांग कर ली| उसकी इस बात से महाराज बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने उस तांत्रिक को कैद में डालने का आदेश दे दिया, और उस बात से वो तांत्रिक बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गया|
अब उसकी नजर पूर्ण रूप से आप पर लग गई थी| वह अच्छी तरह से जान गया था कि बिना तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किए राजकुमारी तक पहुंच पाना भी असंभव है,और आपकी माँ भी इस विद्या में निपूर्ण होने के कारण उस तक पहुचना और भी मुश्किल था उसे यह भी पता था कि वह जिसे पाना चहता है उसके पीछे जो है वह कोई साधारण स्त्री नहीं है, बल्कि उसी राज्य की रानी है, जहां उसे आश्रय मिला हुआ था।
राजा को यदि उसके प्रयासों की भनक भी मिल गई तो अभी तो सिर्फ कैद में डाला था बाद में उसके प्राण बचाने वाला कोई नहीं होगा। इस सबके बाद भी वह राजकुमारी को मन से नहीं निकाल पा रहा था। अंततः इस तांत्रिक ने अपनी तांत्रिक विद्या के द्वारा ही राजकुमारी को वश में करने का फैसला किया।
उसने कई बार छोटे-मोटे प्रयास किए, लेकिन वह सफल न हो सका। अपनी लगातार असफलताओं के कारण राजकुमारी को पा लेने की इच्छा उसके मन में बदला लेने की हद तक बढ़ती जा रही थी। दूसरी ओर महाराज को इस बात का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं था कि रानी भी तंत्र विद्या की अच्छी जानकार है।
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-अंतिम भाग )
Aliya khan
07-Jul-2021 06:24 AM
Badiya
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Salman ikram
28-Mar-2021 11:36 AM
Kya or part bhe ayenge
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Roshan sharma
12-May-2021 06:39 PM
all uploaded
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RICHA SHARMA
20-Mar-2021 08:41 PM
आपने कहानी बहुत अच्छी तरह से लिखी है ,..
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Roshan sharma
22-Mar-2021 02:57 PM
thnx
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